भक्ति की झंकार उर के: प्रार्थना (Bhakti Ki Jhankar Urke Ke Taron Main: Prarthana)

भक्ति की झंकार उर के,

तारों में कर्त्तार भर दो ।

भक्ति की झंकार उर के,

तारों में कर्त्तार भर दो ॥




लौट जाए स्वार्थ, कटुता,


द्वेष, दम्भ निराश होकर ।


शून्य मेरे मन भवन में,


देव! इतना प्यार भर दो ॥




भक्ति की झंकार उर के,

तारों में कर्त्तार भर दो ॥




बात जो कह दूं, हृदय में,


वो उतर जाये सभी के ।


इस निरस मेरी गिरा में,


वह प्रभाव अपार भर दो ॥



भक्ति की झंकार उर के,

तारों में कर्त्तार भर दो ॥




कृष्ण के सदृश सुदामा,


प्रेमियों के पांव धोने ।


नयन में मेरे तरंगित,


अश्रु पारावार भर दो ॥



भक्ति की झंकार उर के,

तारों में कर्त्तार भर दो ॥




पीड़ितों को दूँ सहारा,


और गिरतों को उठा लूँ ।


बाहुओं में शक्ति ऐसी,


ईश सर्वाधार भर दो ॥



भक्ति की झंकार उर के,

तारों में कर्त्तार भर दो ॥




रंग झूठे सब जगत के,


ये "प्रकाश" विचार देखा ।


क्षुद्र जीवन में सुघड़ निज,


रंग परमोदार भर दो ॥



भक्ति की झंकार उर के,

तारों में कर्त्तार भर दो ॥

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