सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा - श्री महादेवजी पार्वती (Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha - Shri Mahadev Parvati)

एक बार महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की।



तब शिवजी ने कहा: हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा?



पार्वती ने तत्काल वहाँ की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा: बेटा! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहाँ हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है। अतः खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से कौन जीता, कौन हारा?



खेल आरंभ हुआ। दैवयोग से तीनों बार पार्वतीजी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। परिणामतः पार्वतीजी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का शाप दे दिया।



बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा: माँ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएँ।



तब ममतारूपी माँ को उस पर दया आ गई और वे बोलीं: यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश-पूजन करने आएँगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे। इतना कहकर वे कैलाश पर्वत चली गईं।



एक वर्ष बाद वहाँ श्रावण में नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया।



तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा: मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ। मनोवांछित वर माँगो।



बालक बोला: भगवन! मेरे पाँव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुँच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ।



गणेशजी
तथास्तु
कहकर अंतर्धान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। शिवजी ने उससे वहाँ तक पहुँचने के साधन के बारे में पूछा।



तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। तदुपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।



वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची। वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा: भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवजी ने
गणेश व्रत
का इतिहास उनसे कह दिया।



तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले। उन्होंने भी माँ के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया।


सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा: राजा हरिश्चंद्र
|
सकट चौथ व्रत कथा: एक साहूकार और साहूकारनी
|
श्री गणेश आरती

रामजी भजन: मंदिर बनेगा धीरे धीरे (Ramji Ka Mandir Banega Dheere Dheere)

कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं: भजन (Kabhi Pyase Ko Pani Pilaya Nahi)

दामोदर अष्टकम (Damodarastakam)

येषां न विद्या न तपो न दानं... (Yeshaan Na Vidya Na Tapo Na Danan)

बधाई भजन: बजे कुण्डलपर में बधाई, के नगरी में वीर जन्मे (Badhai Bhajan Baje Kundalpur Me Badayi Nagri Me Veer Janme)

कहा प्रभु से बिगड़ता क्या: भजन (Kaha Prabhu Se Bigadta Kya)

गजानंद महाराज पधारो कीर्तन की तैयारी है! (Gajanand Maharaj Padharo Kirtan Ki Taiyari Hai)

तुम करुणा के सागर हो प्रभु: भजन (Tum Karuna Ke Sagar Ho Prabhu)

भजन: दिया थाली बिच जलता है.. (Diya Thali Vich Jalta Hai)

भजन: मेरी विनती यही है! राधा रानी (Meri Binti Yahi Hai Radha Rani)

बाल लीला: राधिका गोरी से बिरज की छोरी से.. (Bal Leela Radhika Gori Se Biraj Ki Chori Se)

कहियो दर्शन दीन्हे हो, भीलनियों के राम: भजन (Kahiyo Darshan Dinhe Ho Bhilaniyo Ke Ram)