परमा एकादशी व्रत कथा (Parama Ekadashi Vrat Katha)

परमा एकादशी का महत्त्व:

अर्जुन ने कहा, हे कमलनयन! आपने
शुक्ल पक्ष
की एकादशी का विस्तारपूर्वक वर्णन कर मुझे सुनाया, अतः अब आप कृपा करके मुझे अधिकमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? इसमें किस देवता का पूजन किया जाता है तथा इसके व्रत से किस फल की प्राप्ति होती है? तथा उसकी विधि क्या है? इन सब के बारे मे बताइए।



श्री भगवान बोले, हे अर्जुन!
अधिकमास
के
कृष्ण पक्ष
में जो एकादशी आती है वह
परमा एकादशी
कहलाती है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं।




अधिकमास या
मलमास
को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशियां होती हैं। अधिकमास में 2 एकादशियां होती हैं, जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती हैं।




इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मनुष्य को इसलोक में सुख तथा परलोक में सद्गति प्राप्त होती है। इसका व्रत विधानानुसार करना चाहिए और भगवान विष्णु का धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प आदि से पूजन करना चाहिए।




इस एकादशी की पावन कथा जो कि महर्षियों के साथ काम्पिल्य नगरी में हुई थी, वह मैं तुमसे कहता हूं। ध्यानपूर्वक श्रवण करो..




परमा एकादशी व्रत कथा!

काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का एक अत्यंत धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री अत्यंत पवित्र तथा पतिव्रता थी। किसी पूर्व पाप के कारण वह दंपती अत्यंत दरिद्रता का जीवन व्यतीत कर रहे थे।



ब्राह्मण को भिक्षा मांगने पर भी भिक्षा नहीं मिलती थी। उस ब्राह्मण की पत्नी वस्त्रों से रहित होते हुए भी अपने पति की सेवा करती थी तथा अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रह जाती थी और पति से कभी किसी वस्तु की मांग नहीं करती थी। दोनों पति-पत्नी घोर निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहे थे।



एक दिन ब्राह्मण अपनी स्त्री से बोला: हे प्रिय! जब मैं धनवानों से धन की याचना करता हूँ तो वह मुझे मना कर देते हैं। गृहस्थी धन के बिना नहीं चलती, इसलिए यदि तुम्हारी सहमति हो तो मैं परदेस जाकर कुछ काम करूं, क्योंकि विद्वानों ने कर्म की प्रशंसा की है।



ब्राह्मण की पत्नी ने विनीत भाव से कहा: हे स्वामी! मैं आपकी दासी हूँ। पति अच्छा और बुरा जो कुछ भी कहे, पत्नी को वही करना चाहिए। मनुष्य को पूर्व जन्म में किए कर्मों का फल मिलता है। सुमेरु पर्वत पर रहते हुए भी मनुष्य को बिना भाग्य के स्वर्ण नहीं मिलता। पूर्व जन्म में जो मनुष्य विद्या और भूमि दान करते हैं, उन्हें अगले जन्म में विद्या और भूमि की प्राप्ति होती है। ईश्वर ने भाग्य में जो कुछ लिखा है, उसे टाला नहीं जा सकता।




यदि कोई मनुष्य दान नहीं करता तो प्रभु उसे केवल अन्न ही देते हैं, इसलिए आपको इसी स्थान पर रहना चाहिए, क्योंकि मैं आपका विछोह नहीं सह सकती। पति बिना स्त्री की माता, पिता, भाई, श्वसुर तथा सम्बंधी आदि सभी निंदा करते हैं, हसलिए हे स्वामी! कृपा कर आप कहीं न जाएं, जो भाग्य में होगा, वह यहीं प्राप्त हो जाएगा।




स्त्री की सलाह मानकर ब्राह्मण परदेश नहीं गया। इसी प्रकार समय बीतता रहा। एक बार कौण्डिन्य ऋषि वहां आए..



ऋषि को देखकर ब्राह्मण सुमेधा और उसकी स्त्री ने उन्हें प्रणाम किया और बोले: आज हम धन्य हुए। आपके दर्शन से आज हमारा जीवन सफल हुआ।



ऋषि को उन्होंने आसन तथा भोजन दिया। भोजन देने के बाद पतिव्रता ब्राह्मणी ने कहा: हे ऋषिवर! कृपा कर आप मुझे दरिद्रता का नाश करने की विधि बतलाइए। मैंने अपने पति को परदेश में जाकर धन कमाने से रोका है। मेरे भाग्य से आप आ गए हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि अब मेरी दरिद्रता शीघ्र ही नष्ट हो जाएगी, अतः आप हमारी दरिद्रता नष्ट करने के लिए कोई उपाय बताएं।



ब्राह्मणी की बात सुन कौण्डिन्य ऋषि बोले: हे ब्राह्मणी! मल मास की कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी के व्रत से सभी पाप, दुःख और दरिद्रता आदि नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह धनवान हो जाता है। इस व्रत में नृत्य, गायन आदि सहित रात्रि जागरण करना चाहिए..




..यह एकादशी धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली होती है। धनाधिपति कुबेर ने भी इस एकादशी व्रत का पालन किया था जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया। इसी व्रत के प्रभाव से सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को पुत्र, स्त्री और राज्य की प्राप्ति हुई थी।



तदुपरांत कौण्डिन्य ऋषि ने उन्हें एकादशी के व्रत का समस्त विधान कह सुनाया। ऋषि ने कहा: हे ब्राह्मणी! पंचरात्रि व्रत इससे भी ज्यादा उत्तम है। परमा एकादशी के दिन प्रातःकाल नित्य कर्म से निवृत्त होकर विधानपूर्वक पंचरात्रि व्रत आरम्भ करना चाहिए।..



जो मनुष्य पांच दिन तक निर्जल व्रत करते हैं, वे अपने मा-पिता और स्त्री सहित स्वर्ग लोक को जाते हैं। जो मनुष्य पांच दिन तक संध्या को भोजन करते हैं, वे स्वर्ग को जाते हैं। जो मनुष्य स्नान करके पांच दिन तक ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, वे समस्त संसार को भोजन कराने का फल पाते हैं। जो मनुष्य इस व्रत में अश्व दान करते हैं, उन्हें तीनों लोकों को दान करने का फल मिलता है। जो मनुष्य उत्तम ब्राह्मण को तिल दान करते हैं, वे तिल की संख्या के बराबर वर्षो तक विष्णुलोक में वास करते हैं। जो मनुष्य घी का पात्र दान करते हैं, वह सूर्य लोक को जाते हैं। जो मनुष्य पांच दिन तक ब्रह्मचर्यपूर्वक रहते हैं, वे देवांगनाओं के साथ स्वर्ग को जाते हैं। हे ब्राह्मणी! तुम अपने पति के साथ इसी व्रत को धारण करो। इससे तुम्हें अवश्य ही सिद्धि और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होगी।



कौण्डिन्य ऋषि के वचनानुसार ब्राह्मण और उसकी स्त्री ने परमा एकादशी का पांच दिन तक व्रत किया। व्रत पूर्ण होने पर ब्राह्मण की स्त्री ने एक राजकुमार को अपने यहाँ आते देखा।



राजकुमार ने ब्रह्माजी की प्रेरणा से एक उत्तम घर जो कि सब वस्तुओं से परिपूर्ण था, उन्हें रहने के लिए दिया। तदुपरांत राजकुमार ने आजीविका के लिए एक गांव दिया। इस प्रकार ब्राह्मण और उसकी स्त्रीकी गरीबी दूर हो गई और पृथ्वी पर काफी वर्षों तक सुख भोगने के पश्चात वे पति-पत्नी श्रीविष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गए।

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