आरती सरस्वती जी: ओइम् जय वीणे वाली (Saraswati Om Jai Veene Wali)

ओइम् जय वीणे वाली, मैया जय वीणे वाली

ऋद्धि-सिद्धि की रहती, हाथ तेरे ताली

ऋषि मुनियों की बुद्धि को, शुद्ध तू ही करती

स्वर्ण की भाँति शुद्ध, तू ही माँ करती॥ 1 ॥



ज्ञान पिता को देती, गगन शब्द से तू

विश्व को उत्पन्न करती, आदि शक्ति से तू॥ 2 ॥



हंस-वाहिनी दीज, भिक्षा दर्शन की

मेरे मन में केवल, इच्छा तेरे दर्शन की॥ 3 ॥



ज्योति जगा कर नित्य, यह आरती जो गावे

भवसागर के दुख में, गोता न कभी खावे॥ 4 ॥