भजन: ना जाने कौन से गुण पर, दयानिधि रीझ जाते हैं! (Na Jane Kaun Se Gun Par Dayanidhi Reejh Jate Hain)

ना जाने कौन से गुण पर,

दयानिधि रीझ जाते हैं ।

यही सद् ग्रंथ कहते हैं,

यही हरि भक्त गाते हैं ॥

॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥



नहीं स्वीकार करते हैं,

निमंत्रण नृप सुयोधन का ।

विदुर के घर पहुँचकर भोग,

छिलकों का लगाते हैं ॥

॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥



न आये मधुपुरी से गोपियों की,

दु:ख व्यथा सुनकर ।

द्रुपदजा की दशा पर,

द्वारका से दौड़े आते हैं ॥

॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥



न रोये बन गमन में,

श्री पिता की वेदनाओं पर ।

उठा कर गीध को निज गोद में ,

आँसु बहाते हैं ॥

॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥



कठिनता से चरण धोकर,

मिले कुछ 'बिन्दु' विधि हर को ।

वो चरणोदक स्वयं केवट के,

घर जाकर लुटाते हैं ॥

॥ कि ना जाने कौन से गुण पर..॥



ना जाने कौन से गुण पर,

दयानिधि रीझ जाते हैं ।

यही सद् ग्रंथ कहते हैं,

यही हरि भक्त गाते हैं ॥