भजन: जिसने मरना सीखा लिया है (Jisane Marana Seekh Liya Hai)

जिसने मरना सीखा लिया है,

जीने का अधिकार उसी को ।

जो काँटों के पथ पर आया,

फूलों का उपहार उसी को ॥



जिसने गीत सजाये अपने

तलवारों के झन-झन स्वर पर

जिसने विप्लव राग अलापे

रिमझिम गोली के वर्षण पर

जो बलिदानों का प्रेमी है,

जगती का प्यार उसी को ॥



हँस-हँस कर इक मस्ती लेकर

जिसने सीखा है बलि होना

अपनी पीड़ा पर मुस्काना

औरों के कष्टों पर रोना

जिसने सहना सीख लिया है,

संकट है त्यौहार उसी को ॥



दुर्गमता लख बीहड़ पथ की

जो न कभी भी रुका कहीं पर

अनगिनती आघात सहे पर

जो न कभी भी झुका कहीं पर

झुका रहा है मस्तक अपना यह,

सारा संसार उसी को ॥