सोमवती अमावस्या व्रत कथा (Somvati Amavasya Vrat Katha)

श्री गणेश आरती

सोमवती अमावस्या व्रत कथा के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण परिवार था, उस परिवार में पति-पत्नी एवं उसकी एक पुत्री भी थी। उनकी पुत्री समय के गुजरने के साथ-साथ धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। उस पुत्री में बढ़ती उम्र के साथ सभी स्त्रियोचित सगुणों का विकास हो रहा था। वह
कन्या सुंदर, संस्कारवान एवं गुणवान थी
, परंतु गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था।




एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारें। साधु उस कन्या के सेवाभाव से अत्यधिक प्रसन्न हुए।कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि इस कन्या के हाथ में विवाह योग्य रेखा नहीं है।



तब ब्राह्मण दम्पति ने साधु से इसका उपाय पूछा, कन्या ऐसा क्या करें कि उसके हाथ में विवाह योग बनजाए।साधु महाराज ने कुछ देर विचार करने के पश्चातअपनी अंतर्दृष्टि में ध्यान करके बताया कि कुछ ही दूरी पर एक गांव में सोना नाम की एक धोबिन महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही आचार-विचार एवं संस्कार संपन्न तथा पति परायण है।



यदि
यह सुकन्या उस धोबिन की सेवा करे
और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिंदूर लगा दे, तथा उसके बाद इस कन्या का विवाह हो जाए, तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं बाहर आती-जाती नहीं है।



यह बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने का प्रस्ताव रखा। अगले दिन से ही कन्या प्रात: काल ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, साफ-सफाई एवं अन्य सारे कार्य करके अपने घर वापस आने लगी।




एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि, तुम तो सुबह ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता।

बहू ने कहा: माँ जी, मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूँ। यह सब जानकार दोनों सास-बहू घर की निगरानी करने लगी कि कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है।



कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुंह ढके अंधेरे में घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं?



तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई।
सोना धोबिन पति परायण थी, अतः उसमें तेज था।
वह तैयार हो गई, सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा।




सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर उस कन्या की मांग में लगाया, सोना धोबिन का पति मर गया।
उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर कि रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी।




उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मृत शरीर में वापस जान आ गई। धोबिन का पति फिरसे जीवित हो उठा।


तुलसी आरती - जय जय तुलसी माता
|
तुलसी आरती - महारानी नमो-नमो

श्री कुबेर अष्टोत्तर शतनामावली - 108 नाम (Shri Kuber Ashtottara Shatanamavali - 108 Names)

कई जन्मों से बुला रही हूँ: भजन (Kai Janmo Se Bula Rahi Hun)

आरती: श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं.. (Aarti: Shri Banke Bihari Teri Aarti Gaun)

श्री ललिता माता की आरती (Shri Lalita Mata Ki Aarti)

छठ पूजा: हो दीनानाथ - छठ पूजा गीत (Chhat Puja: Ho Deenanath Chhath Puja Songs)

शुक्रवार संतोषी माता व्रत कथा (Shukravar Santoshi Mata Vrat Katha)

बधाई भजन: लल्ला की सुन के मै आयी यशोदा मैया देदो! (Lalla Ki Sun Ke Mai Aayi Yashoda Maiya Dedo Badhai)

भरी उनकी आँखों में है, कितनी करुणा: भजन (Bhajan: Bhari Unki Ankho Mein Hai Kitni Karuna)

हे रोम रोम मे बसने वाले राम! (Hey Rom Rom Main Basne Wale Ram)

मिलता है सच्चा सुख केवल भगवान! (Milta Hai Sachha Sukh Keval Bhagwan Tere Charno Me)

दर्द किसको दिखाऊं कन्हैया: भजन (Dard Kisako Dikhaun Kanaiya)

जिसकी लागी रे लगन भगवान में..! (Jiski Lagi Re Lagan Bhagwan Mein)