पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 22 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 22)

दृढ़धन्वा राजा बोला, 'हे तपोधन! पुरुषोत्तम मास के व्रतों के लिए विस्तार पूर्वक नियमों को कहिये। भोजन क्या करना चाहिये? और क्या नहीं करना चाहिये? और व्रती को व्रत में क्या मना है? विधान क्या है?



श्रीनारायण बोले, 'इस प्रकार राजा दृढ़धन्वा ने बाल्मीकि मुनि से पूछा। बाद लोगों के कल्याण के लिए बाल्मीकि मुनि ने सम्मान पूर्वक राजा से कहा।



बाल्मीकि मुनि बोले, 'हे राजन्‌! पुरुषोत्तम मास में जो नियम कहे गये हैं। मुझसे कहे जानेवाले उन नियमों को संक्षेप में सुनिए।



नियम में स्थित होकर पुरुषोत्तम मास में हविष्यान्न भोजन करे। गेहूँ, चावल, मिश्री, मूँग, जौ, तिल, मटर, साँवा, तिन्नी का चावल, बथुवा, हिमलोचिका, अदरख, कालशाक, मूल, कन्द, ककड़ी, केला, सेंधा नोन, समुद्रनोन, दही, घी, बिना मक्खन निकाला हुआ दूध, कटहल, आम, हरड़, पीपर, जीरा, सोंठ, इमली, सुपारी, लवली, आँवला, ईख का गुड़ छोड़ कर इन फलों को और बिना तेल के पके हुए पदार्थ को हविष्य कहते हैं। हविष्य भोजन मनुष्यों को उपवास के समान कहा गया है।



समस्त आमिष, माँस, शहद, बेर, राजमाषादिक, राई और मादक पदार्थ। दाल, तिल का तेल, लाह से दूषित, भाव से दूषित, क्रिया से दूषित, शब्द से दूषित, अन्न को त्याग करे।



दूसरे का अन्न, दूसरे से वैर, दूसरे की स्त्री से गमन, तीर्थ के बिना देशान्तर जाना व्रती छोड़ देवे।



देवता, वेद, द्विज, गुरु, गौ, व्रती, स्त्री, राजा और महात्माओं की निन्दा करना पुरुषोत्तम मास में त्याग देवे।



सूतिका का अन्न मांस है, फलों में जम्बीरी नीबू मांस है, धान्यों में मसूर की दाल मांस है और बासी अन्न मांस है। बकरी, गौ, भैंस के दूध को छोड़कर और सब दूध आदि मांस है। और ब्राह्मण से खरीदा हुआ समस्त रस, पृथिवी से उत्पन्न नमक मांस है। ताँबे के पात्र में रखा हुआ दूध, चमड़े में रखा हुआ जल, अपने लिये पकाया गया अन्न को विद्वानों ने मांस कहा है।



पुरुषोत्तम मास में ब्रह्मचर्य, पृथिवी में शयन, पत्रावली में भोजन और दिन के चौथे पहर में भोजन करे।



पुरुषोत्तम मास में रजस्वला स्त्री, अन्त्यज, म्लेच्छ, पतित, संस्कारहीन, ब्राह्मण से द्वेष करने वाला, वेद से गिरा हुआ, इनके साथ बातचीत न करे। इन लोगों से देखा गया और काक पक्षी से देखा गया, सूतक का अन्न, दो बार पकाया हुआ और भूजे हुए अन्नो को पुरुषोत्तम मास में भोजन नहीं करे। प्याज, लहसुन, मोथा, छत्राक, गाजर, नालिक, मूली, शिग्रु इनको पुरुषोत्तम मास में त्याग देवे। व्रती इन पदार्थों को समस्त व्रतों में हमेशा त्याग करे। विष्णु भगवान्‌ के प्रीत्यर्थ अपनी शक्ति के अनुसार कृच्छ्र आदि व्रतों को करे।



कोहड़ा, कण्टकारिका, लटजीरा, मूली, बेल, इन्द्रयव, आँवला के फल, नारियल, अलाबू, परवल, बेर, चर्मशाक, बैगन, आजिक, बल्ली और जल में उत्पन्न होनेवाले शाक, प्रतिपद आदि तिथियों में क्रम से इन शाकों का त्याग करना। गृहस्थाश्रमी रविवार को आँवला सदा ही त्याग करे।



पुरुषोत्तम भगवान्‌ के प्रीत्यर्श्च जिन-जिन वस्तुओं का त्याग करे उन वस्तुओं को प्रथम ब्राह्मण को देकर फिर हमेशा भोजन करे। व्रती कार्तिक और माघ मास में इन नियमों को करे।



हे राजन्‌! व्रती नियम के बिना फलों को नहीं प्राप्त करता है। यदि शक्ति है तो उपवास करके पुरुषोत्तम का व्रत करे अथवा घृत पान करे अथवा दुग्ध पान करे अथवा बिना माँगे जो कुछ मिल जाय उसको भोजन करे। अथवा व्रत करनेवाला यथाशक्ति फलाहार आदि करे। जिसमें व्रत भंग न हो विद्वान्‌ इस तरह व्रत का नियम धारण करे।



पवित्र दिन प्रातःकाल उठ कर पूर्वाह्ण की क्रिया को करके भक्ति से श्रीकृष्ण भगवान्‌ का हृदय में स्मरण करता हुआ नियम को ग्रहण करे। हे भूपते! उपवास व्रत, नक्त व्रत और एकभुक्त इनमें से एक का निश्चय करके इस व्रत को करे।



पुरुषोत्तम मास में भक्ति से श्रीमद्भागवत का श्रवण करे तो उस पुण्य को ब्रह्मा कभी कहने में समर्थ नहीं होंगे। श्रीपुरुषोत्तम मास में लाख तुलसीदल से शालग्राम का पूजन करे तो उसका अनन्त पुण्य होता है। श्रीपुरुषोत्तम मास में कथनानुसार व्रत में स्थित व्रती को देख कर यमदूत सिंह को देख कर हाथी के समान भाग जाते हैं।



हे राजन्‌! यह पुरुषोत्तम मासव्रत सौ यज्ञों से भी श्रेष्ठ है क्योंकि यज्ञ के करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है और पुरुषोत्तम मासव्रत करने से गोलोक को जाता है। जो पुरुषोत्तम मासव्रत करता है उसके शरीर में पृथ्वी के जो समस्त तीर्थ और क्षेत्र हैं तथा सम्पूर्ण देवता हैं वे सब निवास करते हैं।



श्रीपुरुषोत्तम मास का व्रत करने से दुःस्वप्न, दारिद्रय और कायिक, वाचिक, मानसिक पाप ये सब नाश को प्राप्त होते हैं। पुरुषोत्तम भगवान्‌ की प्रसन्नता के लिये इन्द्रादि देवता, पुरुषोत्तम मासव्रत में तत्पर हरिभक्त की विघ्नों से रक्षा करते हैं। पुरुषोत्तम मासव्रत को करने वाले जिन-जिन स्थानों में निवास करते हैं वहाँ उनके सम्मुख भूत-प्रेत पिशाच आदि नहीं रहते।



हे राजन्‌! इस प्रकार जो विधिपूर्वक पुरुषोत्तम मासव्रत को करेगा उस मासव्रत के फलों को यथार्थ रूप से कहने के लिये साक्षात्‌ शेषनाग भगवान्‌ भी समर्थ नहीं हैं।



श्रीनारायण बोले, 'जो पुरुषों में श्रेष्ठ पुरुष मन से अत्यन्त आदर के साथ इस प्रिय पुरुषोत्तम मासव्रत को करता है वह पुरुषों में श्रेष्ठ और अत्यन्त प्रिय होकर रसिकेश्वर पुरुषोत्तम भगवान्‌ के साथ गोलोक में आनन्द करता है।



इति श्रीबृहन्नारदीयपुराणे पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये द्वाविंशोऽध्यायः ॥२२॥

आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको: भजन (Aali Ri Mohe Lage Vrindavan Neeko)

मैं बालक तू माता शेरां वालिए! (Main Balak Tu Mata Sherawaliye)

कान्हा वे असां तेरा जन्मदिन मनावणा (Kahna Ve Assan Tera Janmdin Manavna)

कुछ नहीं बिगड़ेगा तेरा, हरी शरण आने के बाद (Kuch Nahi Bigadega Tera Hari Sharan Aane Ke Baad)

भजन: लाड़ली अद्भुत नजारा, तेरे बरसाने में है (Ladli Adbhut Nazara, Tere Barsane Me Hai)

स्वांसां दी माला नाल सिमरन मैं तेरा नाम: शब्द कीर्तन (Swasa Di Mala Nal Simaran Main Tera Nam)

आओ यशोदा के लाल: भजन (Aao Yashoda Ke Laal)

हरी दर्शन की प्यासी अखियाँ: भजन (Akhiya Hari Darshan Ki Pyasi)

अरे द्वारपालों कहना से कह दो: भजन (Are Dwarpalo Kanhaiya Se Keh Do)

पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 13 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 13)

श्री शीतलाष्टक स्तोत्र (Shri Sheetla Ashtakam)

शिवाष्ट्कम्: जय शिवशंकर, जय गंगाधर.. पार्वती पति, हर हर शम्भो (Shivashtakam: Jai ShivShankar Jai Gangadhar, Parvati Pati Har Har Shambhu)