भजन: कृपालु भगवन् कृपा हो करते (Krapalu Bhagwan Kriya Ho Karte)

कृपालु भगवन् कृपा हो करते,

इसी कृपा से नर तन मिला है ।

दयालु भगवन् दया हो करते,

इसी दया से ये मन मिला है ॥



अजर, अमर तुम हो सृष्टिकर्ता,

अनुपम, अनादि हो जग के भर्ता ।

अभय, अजन्मा हो जग के स्वामी,

आकार तेरा नहीं मिला है ॥



ब्रह्माण्ड रचते हो तुम स्वयं ही,

न शक्तिमत्ता तुम जैसी कोई ।

कण-कण के योजक हे जगनियन्ता!

इच्छा से तेरी हर कण हिला है ॥



है कैसी अद्भुत कारीगरी ये,

जो कोई देखे होता अचम्भित ।

न हाथ सुई लेकर के धागा,

मानुष का चोला कैसे सिला है ॥



हो करते कतरन तुम न्यारी-न्यारी,

विविध रंगों से भरी फुलवारी ।

सौरभ सुमन की मैं जाऊँ वारी,

चमन का हर गुल सुन्दर खिला है ॥



विविध खनिज से भरी है वसुधा,

क्या स्वर्ण, चान्दी क्या ताम्र, लौहा ।

है प्राणवायु कैसी देती जो जीवन,

भण्डार जन-धन सबको मिला है ॥



हैं कैसे जलचर रहते ही जल में,

अन्दर ही कैसे हैं श्वास लेते ।

हैं कुछ उभयचर प्राणी जगत् में,

टू इन ये वन में मुझको मिला है ॥



है न्यायकारिन्! हो न्याय करते,

किया हो जैसा वैसा हो भरते ।

ना तोलते कम और ना जियादा,

चलता निरन्तर ये सिलसिला है ॥



न तुम हो खाते बस हो खिलाते,

न तुम हो पीते बस हो पिलाते ।

भर-भर के आनन्द का रस पिलाया,

आनन्द से मन कमल खिला है ॥



पग पाप पथ पर कभी बढे़ ना,

पुण्यों की सरणि पर नित बढूँ मैं ।

`नन्दकिशोर` बढ़ो अभय मन,

मुश्किल से मानव का तन मिला है ॥



- नन्दकिशोर आर्य