भजन: उठ जाग मुसाफिर भोर भई (Bhajan: Uth Jag Musafir Bhor Bhai)
उठ जाग मुसाफिर भोर भई,
अब रैन कहाँ जो सोवत है।
जो सोवत है सो खोवत है,
जो जागत है सोई पावत है॥
उठ नींद से अखियाँ खोल जरा,
और अपने प्रभु में ध्यान लगा।
यह प्रीत करन की रीत नहीं,
प्रभु जागत है तू सोवत है॥
॥ उठ जाग मुसाफिर भोर भई...॥
जो कल करना सो आज कर ले,
जो आज करे सो अब कर ले।
जब चिड़िया ने चुग खेत लिया,
फिर पछताए क्या होवत है॥
॥ उठ जाग मुसाफिर भोर भई...॥
नादान भुगत अपनी करनी,
ऐ पापी पाप में चैन कहाँ।
जब पाप की गठड़ी शीश धरी,
अब शीश पकड़ क्यूँ रोवत है॥
उठ जाग मुसाफिर भोर भई,
अब रैन कहाँ जो सोवत है।
जो सोवत है सो खोवत है,
जो जगत है सोई पावत है॥
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