श्री चित्रगुप्त जी की आरती - श्री विरंचि कुलभूषण (Shri Chitragupt Aarti - Shri Viranchi Kulbhusan)
श्री विरंचि कुलभूषण,
यमपुर के धामी ।
पुण्य पाप के लेखक,
चित्रगुप्त स्वामी ॥
सीस मुकुट, कानों में कुण्डल,
अति सोहे ।
श्यामवर्ण शशि सा मुख,
सबके मन मोहे ॥
भाल तिलक से भूषित,
लोचन सुविशाला ।
शंख सरीखी गरदन,
गले में मणिमाला ॥
अर्ध शरीर जनेऊ,
लंबी भुजा छाजै ।
कमल दवात हाथ में,
पादुक परा भ्राजे ॥
नृप सौदास अनर्थी,
था अति बलवाला ।
आपकी कृपा द्वारा,
सुरपुर पग धारा ॥
भक्ति भाव से यह,
आरती जो कोई गावे ।
मनवांछित फल पाकर,
सद्गति पावे ॥
माँ दुर्गा देव्यापराध क्षमा प्रार्थना स्तोत्रं! (Maa Durga Kshama Prarthna Stotram)
नाम रामायणम (Nama Ramayanam)
भजन: मेरो लाला झूले पालना, नित होले झोटा दीजो ! (Mero Lala Jhule Palna Nit Hole Jhota Dijo)
मुझे अपनी शरण में ले लो राम: भजन (Mujhe Apni Sharan Me Lelo Ram)
भजन: बेटा जो बुलाए माँ को आना चाहिए (Beta Jo Bulaye Maa Ko Aana Chahiye)
श्री गणेश मंत्र - गजाननं भूत गणादि सेवितं! (Shri Ganesh Mantr: Gajananam Bhoota Ganadhi Sevitam)
बताओ कहाँ मिलेगा श्याम: भजन (Batao Kahan Milega Shyam)
माँ बगलामुखी पौराणिक कथा! (Maa Baglamukhi Pauranik Katha)
अयमात्मा ब्रह्म महावाक्य (Ayamatma Brahma)
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 21 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 21)
श्री गोवर्धन महाराज आरती (Shri Govardhan Maharaj)
जय सन्तोषी माता: आरती (Jai Santoshi Mata Aarti)