श्री चित्रगुप्त जी की आरती - श्री विरंचि कुलभूषण (Shri Chitragupt Aarti - Shri Viranchi Kulbhusan)

श्री विरंचि कुलभूषण,

यमपुर के धामी ।

पुण्य पाप के लेखक,

चित्रगुप्त स्वामी ॥



सीस मुकुट, कानों में कुण्डल,

अति सोहे ।

श्यामवर्ण शशि सा मुख,

सबके मन मोहे ॥



भाल तिलक से भूषित,

लोचन सुविशाला ।

शंख सरीखी गरदन,

गले में मणिमाला ॥



अर्ध शरीर जनेऊ,

लंबी भुजा छाजै ।

कमल दवात हाथ में,

पादुक परा भ्राजे ॥



नृप सौदास अनर्थी,

था अति बलवाला ।

आपकी कृपा द्वारा,

सुरपुर पग धारा ॥



भक्ति भाव से यह,

आरती जो कोई गावे ।

मनवांछित फल पाकर,

सद्गति पावे ॥