श्री चित्रगुप्त जी की आरती - श्री विरंचि कुलभूषण (Shri Chitragupt Aarti - Shri Viranchi Kulbhusan)
श्री विरंचि कुलभूषण,
यमपुर के धामी ।
पुण्य पाप के लेखक,
चित्रगुप्त स्वामी ॥
सीस मुकुट, कानों में कुण्डल,
अति सोहे ।
श्यामवर्ण शशि सा मुख,
सबके मन मोहे ॥
भाल तिलक से भूषित,
लोचन सुविशाला ।
शंख सरीखी गरदन,
गले में मणिमाला ॥
अर्ध शरीर जनेऊ,
लंबी भुजा छाजै ।
कमल दवात हाथ में,
पादुक परा भ्राजे ॥
नृप सौदास अनर्थी,
था अति बलवाला ।
आपकी कृपा द्वारा,
सुरपुर पग धारा ॥
भक्ति भाव से यह,
आरती जो कोई गावे ।
मनवांछित फल पाकर,
सद्गति पावे ॥
किसलिए आस छोड़े कभी ना कभी: भजन (Kisliye Aas Chhauden Kabhi Na Kabhi)
जय श्री वल्लभ, जय श्री विट्ठल, जय यमुना श्रीनाथ जी: भजन (Jai Shri Vallabh Jai Shri Vithal, Jai Yamuna Shrinathji)
हो लाल मेरी पत रखियो बला - दमादम मस्त कलन्दर: भजन (O Lal Meri Pat Rakhiyo Bala Duma Dum Mast Kalandar)
बोल राधे, बोल राधे: भजन (Bol Radhey, Bol Radhey)
भजन: तुम रूठे रहो मोहन (Tum Ruthe Raho Mohan)
आमलकी एकादशी व्रत कथा (Amalaki Ekadashi Vrat Katha)
दुर्गा है मेरी माँ, अम्बे है मेरी माँ: भजन (Durga Hai Meri Maa Ambe Hai Meri Maa)
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 26 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 26)
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना! (Kaise Jiun Main Radha Rani Tere Bina)
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 7 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 7)
भजन: सांवरे को दिल में बसा के तो देखो! (Bhajan: Sanware Ko Dil Me Basa Kar To Dekho)
जन्मे अवध रघुरइया हो: भजन (Janme Awadh Raghuraiya Ho)