ज्वालामुखी किसे कहते हैं?


ज्वालामुखी किसे कहते हैं? और  ज्वालामुखी के कारण एवं प्रकार :

 

ज्वालामुखी धरती पर घटित होने वाली एक आकस्मिक घटना है जिससे भूपटल पर अचानक विस्फोट होता है, उसे ही ज्वालामुखी कहते हैं। इसेे प्रकृति का 'सुरक्षा वाल्व' को भी कहा जाता है। 

 

जैसे हमने ऊपर बताया ज्वालामुखी के होने से कुछ ये प्रदार्थ निकलते है जैसे की लावा, गैस, धुएं, कंकड़, पत्थर आदि बाहर निकलते हैं। इन सभी वस्तुओं का निकास एक प्रकृतिक नली द्वारा होता है, जिसे निकास नाली का कहते हैं। लावा धरातल पर आने के लिए एक चित्र बनाता है, जिसे विवर या क्रेटर कहते हैं। लावा अपने क्रेटर के आसपास जम जाता है और एक शंक्वाकार पर्वत बनता है, जिसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं।

 

ज्वालामुखी विस्फोट की प्रक्रिया दो रूपों में होती है। पहली प्रक्रिया वो पृष्ठ के नीचे होती है तथा दूसरी प्रक्रिया भू पृष्ठ के ऊपर होती है। पर हम जो देख पते है वो भू पृष्ठ के ऊपर की तथा दूसरी प्रक्रिया है। 

 

ज्वालामुखी के कुछ रूप: 


ज्वालामुखी शंकु : जब सक्रिय ज्वालामुखी से लावा और अन्य पदार्थ ज्वालामुखी क्षेत्र के चारों तरफ जमा होने लगते हैं तब उसे ज्वालामुखी संघ को बनते हैं तब उसे ज्वालामुखी शंकु कहलाते है। 

 

ज्वालामुखी छिद्र : सक्रिय ज्वालामुखी पर्वत के ऊपर लगभग बीच में एक छिद्र होता है जिसे ज्वालामुखी क्षेत्र कहते हैं। और वो बोहोत ही गहरा होता है।  

 

ज्वालामुखी नली : सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्र का समान धरातल के नीचे एक पतली नली से होता है जिसे ज्वालामुखी नली कहते हैं।

 

ज्वालामुखी का मुख : जब सक्रिय ज्वालामुखी का क्षेत्र बड़ा होता है तब उसे ज्वालामुखी का मुख कहते हैं।

 

ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ:

 

ज्वालामुखी से निकलने वाले प्रदार्थ यो का भी एक अलग ही वैषित है। 

1. मैग्मा/लावा :- मैग्मा एक गर्म गलित पदार्थ है जिसकी उत्पत्ति तापमान में वृद्धि यादव में कमी या दोनों कारणों से होती है और पृथ्वी की सतह के नीचे निर्मित होता है जब मैग्मा सतह पर पहुंचता है तो उसे लावा कहते हैं। 

 

(लावा- लावा ज्वालामुखी का वो भाग है जिससे चट्टान तथा मैग्मा भी गरम होकर पिघलने शुरू हो जाते हैं। ये ज्वालानुखी के फूटने पर बाहर निकलता है और नई चट्टानों की रचना करता है इसलिए उसके आसपास और कई ज्वालामुखी उत्पन हो जाते हैं उसे लावा कहते है। )

2. ज्वालामुखी बम :- ये  प्रक्रिया ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाली चट्टानों के बड़े-बड़े टुकड़े को ज्वालामुखी बम कहते हैं। एक गर्म गलित अवस्था में रहते हैं लेकिन जैसे-जैसे सत्ता पर आते हैं इनका शीतलन होता जाता है और अंततः ठंडा होकर ठोस अवस्था में प्राप्त कर लेते हैं।

 

3. लैपिली :- ये प्रक्रिया ज्वालामुखी से निष्कासित लगभग मटर के दाने के बराबर वाली ठोस लावा चट्टानों को लैपिली कहते हैं।

 

4. प्युमिस :- यह लावा के झाग से बने होते हैं इसीलिए इस का घनत्व जल के घनत्व से भी कम होता है फलत: ये जल के ऊपर फैलते हैं।

 

5.  धूल/राख :- अति महीन चट्टानी कण, जो हवा के साथ उड़ सकते हैं धूल कहलाते हैं।

 

6. पायरोकलास्ट :- ज्वालामुखी क्रिया से निकलने वाली चट्टानों के बड़े-बड़े टुकड़े को पायरोक्लास्ट कहते हैं।

 

Part of a volcano

 

ज्वालामुखी से होने वाले प्रभाव:-

 

ज्वालामुखी विस्फोट विभिन्न प्रकार के होते हैं, चलिए जानते है विस्तार में। 

फ्रेअटिक विस्फोट से भाप जनित विस्फोट की प्रक्रिया होती है। 
लावा के विस्फोट के साथ उच्च सिलिका का विस्फोट होता है। 
कम सिलिका स्तर के साथ भी लावा का असंयत विस्फोट होता है। मलबे का प्रवाह होता है। कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। 
विस्फोट से लावा इतना चिपचिपा एवं लसदार होता है कि दो उद्गारों के बीच यह ज्वालामुखी छिद्र पर जमकर उसे ढक लेता है. इस तरह गैसों के मार्ग में अवरोध हो जाता है।  

 

मानव जीवन को काफी हद तक नुकसान पहुंचता है इन सभी भूकंपीय गतिविधियों की वजह से और अक्सर यह होता है कि भूकम्प की प्रक्रिया के साथ ही ज्वालामुखी का उद्भेदन होता है. लेकिन ज्वालामुखी के उद्भेदन से न केवल भूकंप का उद्भव होता है बल्कि गर्म पानी के झरने और गाद का निर्माण भी होता है। 1815 ईस्वी में, टैम्बोरा के विस्फोट की वजह से इतनी अधिक गर्मी का उदभव हुआ था कि उस समय एक लोकप्रिय बात चल पड़ी थी कि "बिना ग्रीष्मकालीन ऋतु के गर्मी का महिना". उल्लेखनीय है कि इसकी वजह से उस समय काफी व्यापक मात्रा में उत्तरी गोलार्ध के लोगों को जन-धन को हानि का सामना करना पड़ा था. यह 19 वीं सदी का सबसे बुरा अकाल माना जाता है.