ग्रीनहाउस प्रभाव की प्रक्रिया / ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि


पर्यावरण / जलवायु में परिवर्तन के कारण :

मौसम में परिवर्तन आम बात है।  मौसम और जलवायु दोनों एक दूसरे से बहुत अलग है, और हम साल में तीन मौसम ठंड, गर्मी और बारिश का अनुभव भी करते है. हलाकि अभी का मोहसं कुछ अलग है बारिश के वक्त गर्मी और गर्मी के मोहसं में तेज बारिश होन।  इस मौसम में हुये परिवर्तन को हम आसानी से समझ लेते है परंतु जलवायु में परिवर्तन अत्यंत धीमा होता है और हम इस धीमी प्रक्रिया में हम सामंजस्य भी आसानी से बैठा लेते है और इस परिवर्तन को समझ नहीं पाते. परंतु यह जलवायु में हुआ परिवर्तन पृथ्वी और इस पर उपस्थित जीवो के लिए अत्यंत खतरनाक होता है. जलवायु में परिवर्तन के कारण प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही है. प्राक्रतिक कारणों पर तो हमारा कोई नियंत्रण नहीं है परंतु मानव द्वारा निर्मित कारणों को नियंत्रित करके हम पृथ्वी के अस्तित्व और भविष्य में होने वाली कठिनाइयों / हानि से खुद को बचा सकते है. इसके लिए हुमें जलवायु परिवर्तन के करणों पर गौर करना चाहिए.
 

जलवायु परिवर्तन के कारण :
 

1. प्राक्रतिक कारण :
2. महाद्वीपों का खिसकना
3. ज्वालामुखी
4. समुद्री तरंगे
5. धरती का घुमाव

 

ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि

पूरे विश्व के औसत तापमान में लगातार वृद्धि ( Greenhouse effect increase ) देखि जा रही है।  इसका मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसों की वृद्धि है, ऐसा माना जा रहा है कि मानव द्वारा उत्पादित अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसों के कारण ऐसा हो रहा है। मनुष्य ने अपनी सुख सुविधाओ के लिए पेड़ो और वनों को नष्ट क्र रहा है, जीवाष्म इंधनों का अंधाधुन रूप से प्रयोग हो रहा ह। सके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि यदि वृक्षों का बचाना है तो इन गैसों पर नियंत्रण करना होगा क्योंकि सूरज तीव्र रौशनी और वातावरण में ऑक्सीजन की कमी से पहले ही वृक्षों जीवित  रहने की सम्भावनाएँ कम होंगी।

 

इसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी का तापमान अब पहले से 11 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और कहा जा रहा है सन 2030 तक यह तापमान 5 डिग्री सेल्सियस और बढ़ सकता है. अभिसे इसके कई दुष्परिणाम भी हमें देखने मिल रहे है, जैसे रेगिस्तान में बाढ़ का आना, अतिवर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा कि कमी होना तथा ग्लेशियर पर मौजूद बर्फ भी पिघलने लगी है. और यदि आगे भी यह सब ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन भी दूर नहीं जब पृथ्वी अपने विनाश की ओर अग्रसर होगी. कहा जाता है कि अगर पृथ्वी का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो कई जगह गर्म हवाओ के तूफान उठेंगे तो कही  समुद्र का जलस्तर भी बढ़ जायेगा और निचले हिस्से में मौजूद देश जलमग्न हो जायेंगें. पीने और सिचाई के लिए भी पानी मौजूद नहीं होगा, वन और पेड़ पोधे भी नष्ट होने लगेंगे. इसलिए आज जरूरत है कि हम बढ़ते हुये प्रदूषण को नियंत्रित करे और अपनी पृथ्वी के अस्तित्व को खोने से बचाये.  एसा करनेसे हम खुदको और आने वाली पीढ़ी को बचा सकते है।