तत्त्वमसि महावाक्य (Tatwamasi)

तत्त्वमसि (तत् त्वम् असि)
भारत के शास्त्रों व उपनिषदों में वर्णित महावाक्यों में से एक है, जिसका शाब्दिक अर्थ है,
वह तुम ही हो
। वह दूर नहीं है, बहुत पास है, पास से भी ज्यादा पास है। तेरा होना ही वही है।



सृष्टि के जन्म से पूर्व, द्वैत के अस्तित्त्व से रहित, नाम और रूप से रहित, एक मात्र सत्य-स्वरूप, अद्वितीय 'ब्रह्म' ही था। वही ब्रह्म आज भी विद्यमान है। वह शरीर और इन्द्रियों में रहते हुए भी, उनसे परे है। आत्मा में उसका अंश मात्र है। उसी से उसका अनुभव होता है, किन्तु वह अंश परमात्मा नहीं है। वह उससे दूर है। वह सम्पूर्ण जगत में प्रतिभासित होते हुए भी उससे दूर है।



यह मंत्र
द्वारका धाम या शारदा मठ
का भी महावाक्य है, जो कि पश्चिम दिशा में स्थित
भारत के चार धामों
में से एक है।




महावाक्य का अर्थ होता है?

अगर इस एक वाक्य को ही अनुसरण करते हुए अपनी जीवन की परम स्थिति का अनुसंधान कर लें, तो आपका यह जीवन सफलता पूर्वक निर्वाह हो जाएगा। इसलिए इसको महावाक्य कहते हैं।

प्रज्ञानं ब्रह्म महावाक्य (Prajnanam Brahma)

ना जी भर के देखा, ना कुछ बात की: भजन (Na Jee Bhar Ke Dekha Naa Kuch Baat Ki)

भजन: राम पे जब जब विपदा आई.. (Ram Pe Jab Jab Vipada Aai)

सफला एकादशी व्रत कथा (Saphala Ekadashi Vrat Katha)

दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार: भजन (Duniya Se Jab Main Hara Too Aaya Tere Dwar)

भेजा है बुलावा, तूने शेरा वालिए: भजन (Bheja Hai Bulava Tune Shera Waliye)

हे मुरलीधर छलिया मोहन: भजन (Hey Muralidhar Chhaliya Mohan)

प्रभु को अगर भूलोगे बन्दे, बाद बहुत पछताओगे (Prabhu Ko Agar Bhuloge Bande Need Kahan Se Laoge)

प्रेरक कथा: श्री कृष्ण मोर से, तेरा पंख सदैव मेरे शीश पर होगा! (Prerak Katha Shri Krishn Mor Se Tera Aankh Sadaiv Mere Shish)

भजन: गाइये गणपति जगवंदन (Gaiye Ganpati Jagvandan)

शिव आरती - ॐ जय शिव ओंकारा (Shiv Aarti - Om Jai Shiv Omkara)

मेरे बांके बिहारी लाल, तू इतना ना करिओ श्रृंगार (Mere Banke Bihari Lal Tu Itna Na Nario Shringar)