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“आओ दुलहन!” शहद से भी मधुर स्वर कानों में उतरा, तो जया की तंद्रा भंग हुई थी. “जया, ये ही हैं मेरी भाभी, मेरी बहन… मेरी मां…. जो चाहे कह लो.” अभिनव ने झुककर आदर से उनके चरण छुए, तो जया भी उन चरणों में झुक गयी थी. ओह! तो ये हैं आद्या भाभी, जिनके बारे में रास्तेभर अभिनव बातें करते आये थे. और वो मंत्रमुग्ध-सी सुनती रही थी. एक विशालहृदया, ममतामयी भाभी की कथा. “मात्र बारह वर्ष का था मैं उस व़क़्त, जब तीर्थयात्रा से लौटते व़क़्त अम्मा-बाबूजी एक ट्रेन हादसे में चल बसे थे. भाभी ने ही मुझे मां-बाप का प्यार दिया, पढ़ाया-लिखाया, हर तरह से मेरी देखभाल की. अपना सारा दुख भुलाकर पूरा जीवन मेरे सुख के लिए ही केन्द्रित कर दिया. जानती हो जया, शादी के मात्र दो महीने बाद ही एक सड़क दुर्घटना में भैया की भी दर्दनाक मौत हो गयी थी. भाभी को उनके मामा-मामी ने पाला था. वृद्ध मामा उन्हें लेने आए, तो उन्होंने ये कहकर जाने से इंकार कर दिया कि अब इसी घर में वो पूरी ज़िंदगी काटेंगी. हालांकि मेरी मां के अनुसार वो ऐसी विषकन्या थीं, जिसने उनके सोने जैसे बेटे को डंस लिया था. जब तक मां जीवित रही, कभी दो मीठे बोल भाभी से नहीं कहे… जब भी पुकारा अभागिन कह के ही पुकारा, पर उन्होंने कभी प्रतिकार नहीं किया. स्वयं एक गहन मौत के दायरे में कैद हो गयीं. मां-बाबूजी के बाद मुझ अनाथ को इतना प्यार और ममत्व दिया कि सात जन्मों में भी उनका कर्ज़ नहीं उतार सकता मैं. जया, कभी भूलकर भी भाभी का दिल मत दुखाना. मैं उन्हें वो सारे सुख-सम्मान देना चाहता हूं, जो एक बेटा अपनी मां को दे सकता है.”