कहानी- दिल की दहलीज़ के उस पार (Short Story- Dil Ki Dahleez Ke Us Paar)

“दीदी! मैं चाय…” आगे के शब्द उसके कंठ में ही रह गये. सामने का दृश्य देखकर वो हतप्रभ रह गयी थी. हाथ में पकड़ी ट्रे छूटकर ज़मीन पर गिर गयी थी…. चाय भरी प्यालियों के टुकड़े छन्न से चारों तरफ़ बिखर गये थे… और फिर कमरे में भयंकर सन्नाटा छा गया था. जया की विस्फारित दृष्टि सामने का दृश्य देखकर जड़ हो गयी थी.

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टन…. टन…..! दूर घंटाघर की घड़ी ने दो बजने की सूचना दे दी थी, पर जया की आंखों में नींद नहीं थी. जब मन में भारी उधेड़बुन हो और विचारों का बवंडर कहीं और उड़ाए लिये जा रहा हो तो नींद बैरन बन ही जाती है. आज जया ने एक ऐसे सत्य का प्रत्यक्ष साक्षात्कार किया था, जिसने उसके रोम-रोम में वेदना की उस अग्नि का प्रज्ज्वलन कर दिया था, जो शायद आजीवन शमित नहीं होगी. आज उसने नारी होते हुए भी नारी के उस प्रच्छन्न… अनजान रूप को देखा था, जो अप्रत्याशित… अवर्णनीय… और पीड़ा के गुरुतर भार के कारण असहनीय भी था. एक नारी… और उसकी स्वाभाविक नारी सुलभ कोमल मधुर भावनाओं और स्वप्निल कामनाओं के मध्य संघर्ष का वो मंजर देखा था, जो रोंगटे खड़े कर देनेवाला था. मात्र दो वर्ष पहले इस घर में ब्याह कर आयी जया ने ख़ुशियों के हर रंग को भरपूर जिया है, पर आज सुबह की घटना ने उसे पीड़ा के महासागर में उतार दिया था. उसकी आंखों में विगत के कई मीठे चित्रों के साथ और भी बहुत कुछ कौंध उठा था. शहनाइयों की मधुर गूंज, हंसी-ठिठोली और उल्लास के साथ जब जया ने ससुराल में पहला क़दम रखा, तो जिसने आरती की थाली लेकर स्वागत किया, उसका रूप देखकर वो दंग रह गयी थी. काले पाड़ की स़फेद साड़ी, दूध में घुले केसर-सा गोरा गुलाबी चेहरा, अधरों पर अद्भुत वात्सल्य मिश्रित मुस्कान, आंखों में स्नेह, आशीष और ममत्व का अजस्त्र स्रोत… नारी सौंदर्य का उदात्त और निष्कलंक रूप सामने था.