आविष्कार एवं अनुसंधान इतिहास


बर्ट हुक ने 1665 में बोतल की कार्क की एक पतली परत के अध्ययन के आधार पर मधुमक्खी के छत्ते जैसे कोष्ठ देखे और इन्हें कोशा नाम दिया। यह तथ्य उनकी पुस्तक माइक्रोग्राफ़िया में छपा। राबर्ट हुक ने कोशा-भित्तियों के आधार पर कोशा शब्द प्रयोग किया। 

1674 एंटोनी वॉन ल्यूवेन्हॉक ने जीवित कोशा का सर्वप्रथम अध्ययन किया। 

उन्होंने जीवित कोशिका को दाँत की खुरचनी में देखा था । 

1831 में रॉबर्ट ब्राउन ने कोशिका में 'केंद्रक एवं केंद्रिका' का पता लगाया। 

तदरोचित नामक वैज्ञानिक ने 1824 में कोशिका सिद्धांत (cell theory) का विचार प्रस्तुत किया, परन्तु इसका श्रेय वनस्पति-विज्ञान-शास्त्री श्लाइडेन (Matthias Jakob Schleiden) और जन्तु-विज्ञान-शास्त्री श्वान (Theodor Schwann) को दिया जाता है जिन्होंने ठीक प्रकार से कोशिका सिद्धांत को (1839 में) प्रस्तुत किया और बतलाया कि 'कोशिकाएं पौधों तथा जन्तुओं की रचनात्मक इकाई हैं।' 

1855 : रुडॉल्फ विर्चो ने विचार रखा कि कोशिकाएँ सदा कोशिकाओं के विभाजन से ही पैदा होती हैं। 

1953: वाट्सन और क्रिक (Watson and Crick) ने डीएनए के 'डबल-हेलिक्स संरचना' की पहली बार घोषणा की। 

1981: लिन मार्गुलिस (Lynn Margulis) ने कोशिका क्रम विकास में 'सिबियोस' (Symbiosis in Cell Evolution) पर शोधपत्र प्रस्तुत किया। 

1888: में वाल्डेयर (Waldeyer) ने गुणसूत्र (Chromosome) का नामकरण किया । 

1883: ईमें स्विम्पर (ने पर्णहरित (Chloroplast) Schimper) का नामकरण किया । 

1892: में वीजमैन (Weissman) ने सोमेटोप्लाज़्म (Somatoplasm) एवं जर्मप्लाज्म (Germplasm) के बीच अंतर स्पष्ट किया। 

1955: में जी.इ पैलेड (G.E. Palade) ने राइबोसोम (Ribosome) की खोज की।