ज़ीरो का इतिहास
हमारे गणित इतिहास की दो महान विरासत आर्किमिडीज और एपोलोनियस से भी अधिक महत्व शून्य की खोज को दिया जा सकता है।
आर्यभट ने अपनी पुस्तक आर्यभटीय में लिखा है-
एक (1), दश (10), शत (100), सहस्र (1000), अयुत (10000), नियुत (100000), प्रयुत (1000000), कोटि (10000000), अर्बुद (100000000), स्थानों में प्रत्येक संख्या अपनी पिछली संख्या से दस गुणा है।
जो यह सिद्ध करता है कि आर्यभट्ट शून्य युक्त दाशमिक स्थानीय मानों से परिचित थे। दुनिया के कई गणितज्ञों ने भी इस आविष्कार को वर्णमाला के आविष्कार के बाद मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार माना है।
शून्य सम संख्या क्यों कहा जाता है?
शून्य सम संख्या है, क्योंकि यह “सम संख्या” की मानक परिभाषा के अनुसार भी शून्य है। एक संख्या को “सम” कहा जाता है यदि वह 2 का पूर्ण गुणज है। उदाहरण के लिए 10 एक सम संख्या है क्योंकि 5 × 2=10 बराबर है। इसी प्रकार शून्य भी 2 का एक पूर्ण गुणज है जिसे 0 × 2 के रूप में लिखा जा सकता है, इसलिए शून्य एक सम संख्या है।
ज़ीरो के कितने नाम है?
प्राचीन समय के हिन्दू हस्तलिपियों में खाली स्थान के लिए शून्यम शब्द का प्रयोग किया जाता था।
जब ज़ीरो भारत से अरब पहुंचा तब उसे अरबी में ‘सिफ्र’ कहा गया, इसे ही बाद में उर्दू में सिफर कहा गया जिसका मतलब होता है – कुछ भी नहीं।
11वीं शताब्दी में इब्राहिम बिन मीर इब्न इजरा ने शुन्य के लिए गलगल लफ्ज़ का इस्तेमाल अपनी पुस्तकों में भी किया।
मिस्र के राजदूत डायनोसियस ने शुन्य के लिए ‘नल्ला’ शब्द का प्रयोग किया।
इटली के गणितज्ञ फिबोनैकी ने अपनी पुस्तक The Book of Calculations में शून्य के लिए ‘जेफीरम’ शब्द का इस्तेमाल किया, बाद में इटली में ही इसे जेफिरो कहा गया तथा वेनेटियन में Zero कहा जाने लगा जो वर्तमान में भी शून्य के लिए अंग्रेजी का शब्द माना जाता है।
तो अब आप जान ही गए होंगे कि जीरो का अविष्कार किसने किया शून्य का अविष्कार का मुख्य श्रेय भारतीय विद्वान ‘ब्रह्मगुप्त‘ को जाता हैं. क्योंकि उन्होंने 628 ईसवी में शून्य को सिद्धान्तों सहित पेश किया था।
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