जीरो की खोज किसने किया और कब की?

जीरो की खोज किसने किया और कब की?

जीरो की खोज किसने किया और कब की?


शून्य (०) को अंग्रेजी में जीरो (जीरो)  कहते हैं,पर वही है सांखियोका का हीरो हैं।

 

नमस्कार स्वागत है आपका हमारे इस नए पोस्ट मे.  आज हम आपको बताने वाले है कि शून्य की खोज किसने कि और  कब की? (0 ki khoj kisne ki ? ) जैसा कि आप सब जानते है कि शून्य (0) गणित का ऐसा अंक है जो कि हमारे गिनती को पूर्ण करता है, इसके बिना हमारा गणित ही अधूरा है क्योंकि शून्य के बिना गणित ही नहीं बन सकता|
 

आविष्कार

शून्य की खोज किसने की? बहुत से लोग प्राचीन काल में जीना सीख रहे थे, इसलिए भारत में वैज्ञानिक युग का उदय हो रहा था। जब यहां सिंधु घाटी सभ्यता की खोज हुई थी। तो दुनिया ने सच में इस बात को स्वीकार किया कि आज भी भारत विज्ञान के क्षेत्र में कई विकसित देशों से काफी आगे है। लेकिन दुख की बात है कि हमें अभी तक अपनी कई उपलब्धियों का श्रेय नहीं मिला है।

 

प्राचीन बक्षाली पाण्डुलिपि में, जिसका सटीक समय अभी तक निर्धारित नहीं किया गया है, लेकिन निश्चित रूप से आर्यभट्ट के समय से प्राचीन  है, शून्य का उपयोग किया जाता है और इसके लिए एक संकेत दिया जाता है। 2017 में, इस पाण्डुलिपि से लिए गए 3 नमूनों पर रेडियोकार्बन का विश्लेषण किया गया था। परिणाम आश्चर्यजनक हैं कि तीन नमूने तीन अलग-अलग शताब्दियों में बनाए गए थे - पहला 224 ईस्वी - 383 ईस्वी, दूसरा 680-779 ईस्वी, और तीसरा 885-993 ईस्वी। इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि क्या अलग-अलग सदियों में लिखे गए पन्नों को एक साथ रखा जा सकता है।

 

शुन्य उसके बाद ही यह दुनिया में लोकप्रिय हुआ था, परन्तु अमेरिका के एक गणितज्ञ का कहना है कि भारत में शून्य की खोज नहीं हुई थी। अमेरिकी गणितज्ञ आमिर का कहना है कंबोडिया में सबसे पुराने शून्य की खोज की थी |

 

और यह भी कहा जाता है कि इस शून्य (0) का उल्लेख सर्वप्रथम लोक विभाग नामक ग्रंथ में मिला था, जिसकी रचना मूल रूप से प्राकृत में सर्वानंदी नामक दिगंबर जैन साधु ने की थी। इस पुस्तक में दशमलव संख्या प्रणाली का भी उल्लेख यहाँ किया गया है और भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने की थी फिर लैटिन, इटालियन, फ्रेंच आदि ने इसे अंग्रेजी में ‘जीरो’ कहना शुरू किया इसका उल्लेख भी किया गया है कि । जीरो को हिंदी में शून्य कहा जाता है जो कि संस्कृत की भाषा है।

 

लेकिन शून्य के आविष्कार के कुछ अलग तथ्य भी यहां दिए गए हैं, तज्ञ नो का कहना है की  शून्य का आविष्कार आर्यभट्ट जी ने 5वीं शताब्दी में किया था, फिर हजारों साल पहले कैसे रावण के 10 सिर बिना शून्य के गिने जाते थे, बिना शून्य के कैसे जानें कि कौरव १०० थे, ये कुछ अलग चीजें हैं, लेकिन यह अभी भी कहा जाता है कि शून्य की खोज आर्यभट्ट ने ५वीं शताब्दी में की थी।

 

 

शुन्य के गुण

किसी भी वास्तविक संख्या को शून्य से गुणा करने से
शून्य प्राप्त होता है। जैसे की  (x × 0 = 0)

किसी भी वास्तविक संख्या को शून्य से जोड़ने या घटाने पर वापस वही संख्या प्राप्त होती है लेकिन घटाने पर (0-x) चिह्न परिवर्तन हो जाता है जहां x धनात्मक संख्या है (x + 0 = x ; x - 0 = x)