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अपने अभ‍िनय काल में शायद ही ऐसा कोई साल बीता हो जिस साल अमिताभ को हमने पर्दे पर न देखा हो। इन सालों में अमिताभ कभी नहीं थके, अमिताभ कभी नहीं रुके, अमिताभ कभी न‍िराश नहीं हुए। चाहे उनकी शुरुआती फ‍िल्‍म जंजीर, दीवार , मर्द, अमर अकबर एंथॉनी, स‍िलस‍िला, नमक हलाल, मिस्‍टर नटवरलाल, सूर्यवंशम हों या हाल के सालों में आई 102 नॉट आउट, पीकू या वजीर हों, अमिताभ की एनर्जी और काम करने के प्रति लगन एक ही जैसी द‍िखी। अमिताभ जितने ऊर्जावान कुली में नजर आए, उतने ही ऊर्जावान वो खाकी में नजर आए। यही बात उनकी बाकी स‍ितारों और युवाओं को सीखने वाली है। कभी न थकना, कभी न रुकना यही अमिताभ का मंत्र है। इस मंत्र को अपना कर जीवन में कोई भी महान बन सकता है। अमिताभ के अंदर गजब का सामंजस्‍य है। बड़े अभ‍िनेता होने के बावजूद अमिताभ अपने प‍िता के संस्‍कार और पार‍िवार‍िक मूल्‍यों को साथ लेकर चलते हैं। आज लोग चार पैसे कमाने के बाद पर‍िवार को आंख द‍िखाने लगते हैं, ऐसे में अमिताभ अपने द‍िवंगत प‍िता हर‍िवंश राय बच्‍चन की व‍िरासत यानी उनकी रचनाओं को संभाले हुए हैं। जब भी उन्‍हें मौका मिलता है तो वो अपने प‍िता की कव‍िताओं का कंसर्ट भी करते हैं और खुद कव‍िताएं सुनाते हैं। आज के दौर में ये बड़ी बात है।