जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी कुछ रोचक तथ्य
9 दिनों तक चलने वाली इस रथ यात्रा में बाकी सभी धार्मिक रीति-रिवाजों और नियमों का पालन किया जाएगा। आइए आपको बताते हैं जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी कुछ रोचक तथ्य…
1. उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से इस यात्रा का शुभारंभ हुआ है १ जुलाई को। इस रथ यात्रा के लिए कृष्ण, बलराम और बहन सुभद्रा तीनों का अलग-अलग रथ तैयार किया जाता है। इनमें सबसे आगे बड़े भाई बलराम का रथ, लाडली बहन सुभद्रा का रथ बीच में और संपूर्ण जगत के पालनहार भगवान कृष्ण का रथ सबसे पीछे चलता है।
2. बलराम जी के रथ को तालध्वज कहते हैं और इसका रंग लाल और हरा होता है।
3. बहन सुभद्रा के रथ को दर्पदलन कहा जाता है और यह काले व नीले रंग का होता है। वहीं भगवान कृष्ण के रथ को गरुड़ध्वज कहते हैं और इसका रंग लाल व पीला होता है।
4. रथ की लकड़ी के लिए नीम के पेड़ का चयन किया जाता है। यह एक विशेष प्रकार की लकड़ी से बने होते हैं, जिसे दारु कहा जाता है। बाकायदा समिति का गठन करके शुभ वृक्षों का चयन किया जाता है और फिर उनसे रथ बनाए जाते हैं
5. भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलरामजी तीनों की मूर्तियों में किसी के हाथ, पैर और पंजे नहीं होते हैं। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा यह है कि प्राचीन काल में इन मूर्तियों को बनाने का काम विश्वकर्मा जी कर रहे थे। उनकी यह शर्त थी कि जब तक मूर्तियों को बनाने का काम पूरा नहीं हो जाएगा, तब तक उनके कक्ष में कोई भी प्रवेश नहीं करेगा। लेकिन राजा ने उनके कक्ष का दरवाजा खोल दिया तो विश्वकर्माजी ने मूर्तियों को बनाना बीच में ही छोड़ दिया। तब से मूर्तियां अधूरी की अधूरी रह गईं हैं तो आज भी ऐसी ही मूर्तियों की पूजा की जाती है।
6. जगन्नाथजी का रथ 16 पहियों से बना होता है और इसे बनाने में 332 टुकड़ों का प्रयोग किया जाता है। इसकी ऊंचाई 45 फीट रखी जाती है। इस रथ का आकार बाकी दोनों रथों से बड़ा होता है। इनके रथ पर हनुमानजी और नृसिंह भगवान के प्रतीक चिह्न अंकित रहते हैं।
7. यहां मंदिर के ध्वज को रोजाना बदलने की परंपरा का पालन बरसों से किया जा रहा है। एक पुजारी रोजाना मंदिर की गुंबद पर चढ़कर ध्वज बदलता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी यह ध्वज नहीं बदला गया तो मंदिर 18 साल के लिए बंद हो जाएगा।
8. रथ यात्रा पुरी के मंदिर से चलकर नगर भ्रमण करते हुए गुंडीचा मंदिर पहुंचती है। यहां भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ 7 दिन तक विश्राम करते हैं। गुंडीचा मंदिर भगवान जगन्नाथजी की मौसी का घर कहलाता है।
9. रथ यात्रा के तीसरे दिन यानी आषाढ़ पंचमी को देवी लक्ष्मी जगन्नाथजी को ढूंढ़ते हुए यहां आती हैं। तब यहां पुजारी दरवाजा बंद कर देते हैं और देवी लक्ष्मी नाराज होकर रथ का पहिया तोड़कर वापस चली जाती हैं।
10. बाद में फिर जगन्नाथजी उन्हें मनाने जाते हैं। उस वक्त यहां मना मनौव्वल संवाद का गान किया जाता है। जो कि सुनने में बेहद अनूठे लगते हैं।