हाथी का शीश ही क्यों श्रीगणेश के लगा? (Hathi Ka Sheesh Hi Kiyon Shri Ganesh Ke Laga?)
गज और असुर के संयोग से एक असुर जन्मा था, गजासुर। उसका मुख गज जैसा होने के कारण उसे गजासुर कहा जाने लगा। गजासुर शिवजी का बड़ा भक्त था और शिवजी के बिना अपनी कल्पना ही नहीं करता था। उसकी भक्ति से भोले भंडारी गजासुर पर प्रसन्न हो गए वरदान मांगने को कहा।
गजासुर ने कहा: प्रभु आपकी आराधना में कीट-पक्षियों द्वारा होने वाले विघ्न से मुक्ति चाहिए। इसलिए मेरे शरीर से हमेशा तेज अग्नि निकलती रहे जिससे कोई पास न आए और मैं निर्विघ्न आपकी अराधना करता रहूं।
महादेव ने गजासुरो को उसका मनचाहा वरदान दे दिया। गजासुर फिर से शिवजी की साधना में लीन हो गया। हजारो साल के घोर तप से शिवजी फिर प्रकट हुए और कहा: तुम्हारे तप से प्रसन्न होकर मैंने मनचाहा वरदान दिया था। मैं फिर से प्रसन्न हूं बोलो अब क्या मांगते हो? गजासुर कुछ इच्छा लेकर तो तप कर नहीं रहा था। उसे तो शिव आराधना के सिवा और कोई कामपसंद नहीं था लेकिन प्रभु ने कहा कि वरदान मांगो तो वह सोचने लगा।
गजासुर ने कहा: वैसे तो मैंने कुछ इच्छा रखकर तप नहीं किया लेकिन आप कुछ देना चाहते हैं तो आप कैलाश छोड़कर मेरे उदर (पेट) में ही निवास करें। भोले भंडारी गजासुर के पेट में समा गए। माता पार्वती ने उन्हें खोजना शुरू किया लेकिन वह कहीं मिले ही नहीं। उन्होंने विष्णुजी का स्मरण कर शिवजी का पता लगाने को कहा
श्रीहरि ने कहा: बहन आप दुखी न हों। भोले भंडारी से कोई कुछ भी मांग ले, दे देते हैं। वरदान स्वरूप वह गजासुर के उदर में वास कर रहे हैं। श्रीहरि ने एक लीला की। उन्होंने नंदी बैल को नृत्य का प्रशिक्षण दिया और फिर उसे खूब सजाने के बाद गजासुर के सामने जाकर नाचने को कहा। श्रीहरि स्वयं एक ग्वाले के रूप में आए औऱ बांसुरी बजाने लगे। बांसुरी की धुन पर नंदी ने ऐसा सुंदर नृत्य किया कि गजासुर बहुत प्रसन्न हो गया।
उसने ग्वाला वेशधारी श्रीहरि से कहा: मैं तुम पर प्रसन्न हूं। इतने साल की साधना से मुझमें वैराग्य आ गया था। तुम दोनों ने मेरा मनोरंजन किया है। कोई वरदान मांग लो।
श्रीहरि ने कहा: आप तो परम शिवभक्त हैं। शिवजी की कृपा से ऐसी कोई चीज नहीं जो आप हमें न दे सकें। किंतु मांगते हुए संकोच होता है कि कहीं आप मना न कर दें। श्रीहरि की तारीफ से गजासुर स्वयं को ईश्वरतुल्य ही समझने लगा था।
उसने कहा: तुम मुझे साक्षात शिव समझ सकते हो। मेरे लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं। तुम्हें मनचाहा वरदान देने का वचन देता हूं।
श्रीहरि ने फिर कहा: आप अपने वचन से पीछेतो न हटेंगे। गजासुर ने धर्म को साक्षी रखकर हामी भरी तो श्रीहरि ने उससे शिवजी को अपने उदर से मुक्त करने का वरदान मांगा। गजासुर वचनबद्ध था। वह समझ गया कि उसके पेट में बसे शिवजी का रहस्य जानने वाला यह रहस्य यह कोई साधारण ग्वाला नहीं हैं,जरूर स्वयं भगवान विष्णु आए हैं। उसने शिवजी को मुक्त किया और शिवजी से एक आखिरी वरदान मांगा।
उसने कहा: प्रभु आपको उदर में लेने के पीछे किसी का अहित करने की मंशा नहीं थी।
मैं तो बस इतना चाहता था कि आपके साथ मुझे भी स्मरण किया जाए। शरीर से आपका त्याग करने के बाद जीवन का कोई मोल नहीं रहा। इसलिए प्रभु मुझे वरदान दीजिए कि मेरे शरीर का कोई अंश हमेशा आपके साथ पूजित हो। शिवजी ने उसे वह वरदान दे दिया।
श्रीहरि ने कहा: गजासुर तुम्हारी शिवभक्ति अद्भुत है। शिव आराधना में लगे रहो। समय आने पर तुम्हें ऐसा सम्मान मिलेगा जिसकी तुमने कल्पना भी नहीं की होगी। जब गणेशजी का शीश धड़ से अलग हुआ तो गजासुर के शीश को ही श्रीहरि काट लाए और गणपति के धड़ से जोड़कर जीवित किया था। इस तरह वह शिवजी के प्रिय पुत्र के रूप में प्रथम आराध्य हो गया।
होली भजन: फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर (Holi Bhajan: Faag Khelan Barasane Aaye Hain Natwar Nand Kishore)
वो कौन है जिसने हम को दी पहचान है (Wo Kon Hai Jisne Humko Di Pahachan Hai)
आज तो गुरुवार है, सदगुरुजी का वार है (Aaj To Guruwar hai, Sadguru Ka War Hai)
अयोध्या नाथ से जाकर पवनसुत हाल कह देना: भजन (Ayodhya Nath Se Jakar Pawansut Hal Kah Dena )
श्री लक्ष्मी सुक्तम् - ॐ हिरण्यवर्णां हरिणींसुवर्णरजतस्रजाम् (Sri Lakshmi Suktam - Om Hiranya Varnam)
सियारानी का अचल सुहाग रहे - भजन (Bhajan: Siyarani Ka Achal Suhag Rahe)
भजन: थारी जय जो पवन कुमार! (Bhajan: Thari Jai Ho Pavan Kumar Balihari Jaun Balaji)
शीश गंग अर्धंग पार्वती: भजन (Sheesh Gang Ardhang Parvati)
घुमा दें मोरछड़ी: भजन (Ghuma De Morchadi)
भजन: राधे कृष्ण की ज्योति अलोकिक (Radhe Krishna Ki Jyoti Alokik)
श्यामा तेरे चरणों की, गर धूल जो मिल जाए: भजन (Shyama Tere Charno Ki, Gar Dhool Jo Mil Jaye)
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा! (Papankusha Ekadashi Vrat Katha)